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पौंग जलाशय से 2800 मछुआरों को मिला रोजगार

February 09, 2020 06:25 PM

पौंग जलाशय से 2800 मछुआरों को मिला रोजगार

शिमला। प्रदेश सरकार कांगड़ा जिला की शिवालिक पहाडिय़ों की तलहटी में बने पौंग बांध जलाशय के माध्यम से लगभग 2800 मछुआरों को रोजगार उपलब्ध करवा रही है। वर्ष 2019-20 में इस जलाशय से 266 रूपये प्रति किलोग्राम की दर से मछली की बिक्री हुई जो देश के सभी बड़े जलाशयों की तुलना में अधिक है।
यह बांध शिवालिक पहाड़ी के आर्द्रक्षेत्र में ब्यास नदी पर सन 1975 में बनाया गया था जिसका 12,561 वर्ग किलोमीटर का जलग्रहण क्षेत्र है और इसमें 15,662 हैक्टेयर में पानी फैला हुआ है। यह हिमाचल प्रदेश के हिमालयी तलहटी में मछली उत्पादन के लिए प्रमुख जलाशय के रूप में उभरा है।
वर्ष 1975 में मत्स्य पालन विभाग द्वारा पहली बार मछली परीक्षण किया गया था। पहले वर्ष में मछली उत्पादन 98 टन था जो वर्ष 2018-19 में बढक़र 287.513 टन हो गया। प्रदेश सरकार ने 1975 से सहकारी समितियों के माध्यम से विस्थापित परिवारों के युवाओं को आजीविका सुनिश्चित करने के लिए मछली पकडऩे का अधिकार दिया।
वर्तमान में मछुआरों की 15 सहकारी समितियां कार्यरत हैं जिन्होंनें लगभग 3,902 मछुआरों को सदस्यता प्रदान की है और 2800 लाईसेंसधारक मछुआरे जलाशयों में कार्य कर रहे हैं। वर्तमान में मत्स्य पालन के व्यवसाय से जुड़े 2800 सक्रिय मछुआरे विस्थापित परिवारों से सम्बन्ध रखते हैं। इसके अतिरिक्त 2800 मछुआरों को प्रत्यक्ष  रोजगार के अलावा मछली पकडऩे की गतिविधियां, उनकी सहायता करने, ढुलाई, परिवहन, मछली की पैकिंग, बुनाई और उनके विपणन आदि के लिए एक हजार से अधिक परिवारों को अप्रत्यक्ष रूप से रोजगार प्रदान किया गया है।
लगभग 24,483 हैक्टेयर में फैले पानी के साथ पौंग बांध जलाशय को मछली उत्पादन करने तथा उनकी उच्चतम दर प्राप्त करने के लिए देश के बड़े जलाशयों में सर्वश्रेष्ठ प्रबन्धित जलाशय के रूप में आंका गया हैै।
पौंग जलाशय में वर्ष 1975-75 के दौरान संग्रहण कार्यक्रम आरम्भ किया गया था और तब से यह कार्यक्रम नियमित रूप से चल रहा है। इस कार्यक्रम में मुख्य रूप से मीरकॉप और भारत की प्रमुख एल.रोहिता, सी.कातला तथा सी.मीरगला नामक मछलियों के बीज भी तैयार किए जा रहे हैं।
प्रारम्भिक वर्षों के दौरान सैलमोनिडैक, साईप्रिनिडैक, कॉबीटिडैक तथा सिसोरिडेई आदि परिवार से सम्बन्धित रिहोफिलिक प्रजाति की मछली की प्रभुता थी। यद्यपि भारतीय मीरकॉप के साथ मछली पालन विभाग द्वारा कई वर्षों से जलाशय और प्रणालीगत बीज भण्डार की कैच संरचना से नई बायोजैनिक क्षमता की 50 से 60 प्रतिशत कॉर्पस मछलियां तैयार की जा रही थीं लेकिन बाद में 1990 के दौरान कैटफिश का उत्पादन शुरू किया गया। वर्ष 2004-05 के दौरान प्रति जलाशय 27.4 किलो प्रति हैक्टेयर उत्पादन हो गया जिसमें कैटफिश और कॉर्प का उत्पादन 83 प्रतिशत और 17 प्रतिशत हुआ। वर्तमान में जलाशयों में 34.48 प्रतिशत कॉर्प और 65.52 प्रतिशत कैटफिश पकड़ी जा रही है।
कोलबांध, गोबिन्दसागर, चमेरा, रणजीतसागर तथा पौंगबांध परियोजनाओं के पूरा होने से मछली पकडऩे की गतिविधियों के लिए मुख्यत: 6 हजार से अधिक मछुआरों के परिवारों को पूर्णकालिक प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से रोजगार प्रदान किया जा रहा है। गरीब मछुआरों के हितों की रक्षा के लिए मत्स्य पालन विभाग मछली उत्पादन बढ़ाने के लिए हर सम्भव प्रयास कर रहा है।
प्रत्येक वर्ष की शुरूआत में ही गर्मियों के दौरान खुली नीलामी के माध्यम से दरें तय की जाती हैं जो पहली अप्रैल से 30 सितम्बर और सर्दियों में पहली अक्तूबर से 31 मार्च तक मान्य होती हैं। विभाग मछली की कुल बिक्री आय में 15 प्रतिशत रॉयल्टी लेता है जबकि सहकारी समितियां 5 से 7 प्रतिशत कटौती के बाद नियमित रूप से 10 मछुआरों को प्रति सप्ताह भुगतान करती है। इसी प्रकार मछुआरों को उनके मछली पकडऩे की लागत का 78 से 80 प्रतिशत दिया जाता है।
मत्स्य पालन विभाग ने अन्य मछुआरों के लिए गहरे पानी में गीयर्स के संचालन के लिए प्रशिक्षण पाठ्यक्रम शुरू किया है जिसमें विभिन्न समुदायों के मछुआरों को मछली पकडऩे के व्यवसाय के रूप में अपनाने के लिए प्रेरित किया जाता है।
पौंग जलाशय में ज्यादातर मछुआरे पूर्णकालिक मछुआरे हैं और औसतन हर मछुआरे के पास लगभग 60 हजार रूपये मूल्य की एक नाव है। मछुआरे आम तौर पर जाल का उपयोग करते हैं। आर्थिक रूप से महत्वपूर्ण प्रजातियों के लिए न्यूनतम स्वीकार्य आकार विभाग द्वारा ही तय किया जाता है।
 
 
 

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